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Wednesday, April 13, 2016
BWI: 1996 से 2015 के दौरान दो अरब हेक्टेयर में बायोटेक / जीएम फसल लगाई गई
Source : International Service for the Acquisition of Agri-Biotech Applications (ISAAA)
Wednesday, April 13, 2016 10:30AM IST (5:00AM GMT)
1996 से 2015 के दौरान दो अरब हेक्टेयर में बायोटेक / जीएम फसल लगाई गई
बायोटेक फसल के क्षेत्र में 20 साल में हुई प्रगति से किसानों ने US$150 अरब अमेरिकी डॉलर से ज्यादा का लाभ हुआ
Beijing, China
इंटरनेशनल सर्विस फॉर एक्विजिशन ऑफ एग्री-बायोटेक एपलीकेशंस (आईएसएएए) ने अपनी वार्षिक रिपोर्ट जारी की है। इसमें बायोटेक फसल अपनाए जाने से संबंधित विवरण है। इस रिपोर्ट का शीर्षक है, “ट्वेंटीएथ एनिवर्सरी ऑफ ग्लोबल कमर्शियलाइजेशन ऑफ बायोटेक क्रॉप्स (1996-2015) एंड बायोटेक क्रॉप्स हाईलाइट्स इन 2015”। इसमें बताया गया है कि बायोटेक फसल का क्षेत्रफल में हेक्टेयर में 1996 में 1.7 मिलियन से बढ़ कर 2015 में 179.7 मिलियन हो गया है। सिर्फ 20 साल में यह 100 गुना वृद्धि हाल के समय में बायोटेकनालॉजी को सबसे तेजी से अपनाए जाने का नतीजा है। इससे बायोटेक फसल में किसानों की संतुष्टि का पता चलता है।
1996 से अभी तक 2 अरब हेक्टेयर से ज्यादा कृषि भूमि में बायोटेक फसल लगाई जा चुकी है। यह चीन और अमेरिका की कुल भूमि का दूने से भी ज्यादा है। इसके अलावा, अनुमान है कि 1996 से 28 देशों के किसानों ने $150 अमेरिकी डॉलर से ज्यादा का मुनाफा कमाया है। इससे हर साल कोई 16.5 मिलियन छोटे किसानों और उनके परिवार की गरीबी दूर करने में सहायता मिली है। अभी तक कुल 65 मिलियन लोगों की सहायता हुई है तथा इनमें कुछ दुनिया भर के सबसे गरीब लोग हैं।
गुजरे दो दशक से आईएसएएए रिपोर्ट लिखने वाले आईएसएएए के संस्थापक और एमेरिटस चेयर क्लाइव जेम्स ने कहा, “विकासशील देशों में बाययोटेक फसल लगाने वाले किसानों की संख्या ज्यादा होती है। संक्षेप में इसका कारण यही है कि बायोटक फसल पैदावार बढ़ाने की जटिल जांच प्रक्रिया से गुजर चुके होते हैं।” उन्होंने आगे कहा, “विरोधियों के इस दावे के बावजूद कि बायोटेक्नालॉजी से सिर्फ औद्योगिक देशों में किसानों को लाभ होता है, विकासशील देशों में इसे अपनाया जाना जारी है और यह विरोधियों के दावे को गलत साबित करता है।”
विकासशील देशों ने लगातार चौथे साल औद्योगिक देशों से ज्यादा बड़े क्षेत्र में बायोटेक फसल लगाई है (14.5 मिलियन हेक्टेयर्स)। 2015 में दुनिया भर बायोटेक फसल जितने हेक्टेयर में लगाई जाती है उसके 54 प्रतिशत में (179.7 मिलियन बायोटेक हेक्टेयर्स में 97.1 मिलियन) लैटिन अमेरिका, एशियाई और अफ्रीकी किसानों ने बायोटेक फसल की खेती की। बायोटेक फसल लगाने वाले 28 देशों में 20 विकासशील देश हैं। 1996 से 2015 के बीच हर साल 18 मिलियन किसानों ने बायोटेक फसल लगाने का लाभ प्राप्त किया है। इनमें 90 प्रतिशत छोटे, संसाधनों के लिहाज से कमजोर उत्पादक हैं जो विकासशील देशों के हैं।
आईएसएएए के अंतरराष्ट्रीय संयोजक रैंडी हॉटिया ने कहा, “विकासशील देशों में चीन बायोटेक्नालॉजी के लाभ का सिर्फ एक उदाहरण है। 1997 और 2014 के बीच कपास की किस्मों से चीन के कपास किसानों को $17.5 बिलियन का लाभ होने का अनुमान है। अकेले 2014 में $1.3 बिलियन का लाभ हुआ।”
इसके अलावा, 2015 में भारत कपास का अग्रणी उत्पादक बना और इसके ज्यादातर विकास का श्रेय बायोटेक बीटी कॉटन को है। भारत दुनिया में सबसे बड़ा बायोटेक कॉटन का देश है और 2015 में 11.6 मिलियन हेक्टेयर्स में 7.7 मिलियन छोटे किसानों ने यह फसल लगाई थी। 2014 और 2015 में भारत में लगाई गई कपास की 95 प्रतिशत फसल बायोटेक बीज से लगाई गई थी। चीन में 2015 के दौरान इसे 96 प्रतिशत अपना लिया गया था।
हॉटिया ने आगे कहा, “जो किसान परंपरागत रूप से जोखिम नहीं लेने वाले हैं, बायोटेक फसल का मूल्य जानते हैं। इससे किसानों और उपभोक्ताओं को समान रूप से लाभ मिलता है। इसमें सूखे को झेलना, कीटों और रोगों का प्रतिरोध शाकनाशियों को बर्दाश्त करना तथा पोषण और भोजन की गुणवत्ता बेहतर होना शामिल है।” उन्होंने आगे कहा, “यही नहीं, बायोटेक फसल उत्पादन को स्थिर रखता है और स्थायी उत्पादन में योगदान करता है तथा जलवायु परिवर्तन और अंतरराष्ट्रीय आहार सुरक्षा से संबंधित चिन्ता को दूर करता है।”
1996 से 2014 के 19 वर्षों तक निरंतर विकास की उल्लेखनीय सफलता तथा इसमें 12 वर्षों तक दो अंकों के विकास के बाद दुनिया भर में बायोटेक फसल जितने हेक्टेयर में लगाई जाती है वह 2014 में सबसे ज्यादा 181.5 मिलियन रही। इसकी तुलना में 2015 में यह 179.7 मिलियन हेक्टेयर था। यह एक प्रतिशत की शुद्ध मामूली कमी के समतुल्य है। यह परिवर्तन मुख्य रूप से फसल लगाए जाने वाले क्षेत्र में कमी के बावजूद हुआ है। फसल लगाई जाने भूमि में कमी कारण यह है कि जीन्सों वाली फसल की कीमत कम होती है। आईएसएएए का अनुमान है कि फसल की कीमत बेहतर होगी तो फसल लगाए जाने वाले कुल क्षेत्र में वृद्धि होगी। उदाहरण के लिए, कनाडा ने अनुमान लगाया है कि कनोला की खेती का क्षेत्र 2016 में बढ़कर फिर 2014 के स्तर पर पहुंच जाएगा। 2015 में बायोटेक फसल जितने हेक्टेयर में लगाई गई थी उसे प्रभावित होने के कारणों में दक्षिण अफ्रीका में पड़ा जोरदार सूखा है। इसका नतीजा हुआ कि जितने क्षेत्र में बायोटेक फसल की खेती होनी थी उसमें 23 प्रतिशत या सात लाख हेक्टेयर की कमी आई। पूर्वी और दक्षिणी अफ्रीका में 2015/2016 के दौरान पड़े सूखे से प्रभावित गरीब लोगों की संख्या 15 से 20 मिलियन है और ये लोग आहार सुरक्षा के लिहाज से जोखिम में हैं और दक्षिण अफ्रीका को मजबूर करते हैं कि वे मक्के के उत्पादन पर निर्भर करें जबकि वह मक्के का निर्यातक है।
आईएसएएए की 2015 की रिपोर्ट की खास बातों में शामिल हैं :
नई बायोटेक फसल को कई देशों में मान्यता दी गई और / या कई देशों में व्यावसायीकरण के लिए स्वीकार किया गया। इनमें अमेरिका, ब्राजील, अर्जेन्टीना कनाडा और म्यामार शामिल है।
अमेरिका में कई चीजें पहली बार हुईं। इनमें नए उत्पादों का व्यावसायीकरण शामिल है। जैसे :
इन्नेट™ पहली पीढ़ी के आलू, जिसमें एक्रिलामाइड, संभावित कार्सिनोजेन का स्तर कम है और खंरोच आदि का रोधी है। इन्नेटTM दूसरी पीढ़ी को 2015 में मंजूरी मिली थी और इसमें लेट ब्लाइट रेसिसटेंस भी है। यह उल्लेखनीय है कि आलू की फसल दुनिया भर में चौथी सबसे महत्त्वपूर्ण खाई जाने वाली फसल है।
आर्कटिक ® सेब जो काटने पर भूरे नहीं होते हैं। .
पहली गैर ट्रांसजेनिक जिनोम संपादित फसल जिसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर व्यावसायिक बनाया गया था, एसयू कनोला को अमेरिका में रोपा गया था।
मनुष्य की खपत के लिए पहली बार जीएम एनिमल फूड प्रोडक्ट, जीएम सैलमन की मंजूरी।
कई सारी विशेषताओं के साथ बायोटेक फसल जिसे अक्सर “स्टैक्ड ट्रेट्स” कहा जाता है को 58.5 मिलियन हेक्टेयर्स में लगाया गया था जो भारत में जितने क्षेत्र में बायोटेक फसल लगाई गई है का 33 प्रतिशत है। साल के मुकाबले साल के हिसाब से इसमें 14 प्रतिशत की वृद्धि हो रही है।
वियतनाम ने स्टैक्ड विशेषता वाले बायोटेक बीटी और हर्बिसाइड टॉलरेंट मक्का को अपनी पहली पायोटेक फसल के रूप में रोपा।
बायोटेक ड्रॉट गार्ड मेज (मक्का) पहली बार अमेरिका में 2013 में रोपा गया था, तबके 50,000 हेक्टेयर्स से 15 गुना बढ़कर 810,000 हेक्टेयर्स हो गया जिससे किसानों की उच्च स्वीकार्यता का पता चलता है।
सुडान ने बीटी कॉटन की खेती वाले क्षेत्र में 30 प्रतिशत इजाफा किया और इसे 120,000 हेक्टेयर्स पर पहुंचा दिया। इसके साथ ही कई अन्य कारणों से बुरकिना फासो में भी खेती वाले क्षेत्र में वृद्धि हुई।
आठ अफ्रीकी देशों ने गरीबों के लिए उपयोगी, प्राथमिकता वाली अफ्रीकी फसल का जमीनी परीक्षण किया। मंजूरी से पहले का आवश्यक कदम।
अब आगे खेती में बायोटेक्नालॉजी के भविष्य को देखा जाए तो आईएसएएए ने तीन प्रमुख मौकी की पहचान की है ताकि बायोटेक फसल को अपनाने में निरंतर विकास चलता रहे जो इस प्रकार है :
मौजूदा प्रमुख बायोटेक बाजारों में अपनाए जाने की ऊंची दर (90 से 100 प्रतिशत) से विस्तार का संभावना बहुत कम रहती है। हालांकि चुने हुए उत्पादों जैसे बायोटेक मेज के लिए “नए” देशों की संख्या अच्छी-खासी है। इसके लिए दुनिया भर में 100 मिलियन हेक्टेयर की संभावना और है। इसमें 60 मिलियन हेक्टेयर्स की संभावना एशिया में और इनमें से 35 मिलियन हेक्टेयर्स की संभावना अकेले चीन में है। इसके अलावा 35 मिलियन हेक्टेयर्स की संभावना अफ्रीका में है।
इस समय 85 से नए संभावित उत्पादों का जमीनी परीक्षण चल रहा है; इनमें एक बायोटेक मक्का ऐसा है जो सूखा भी झेल लेता है। यह डब्ल्यूईएमए (वाटर एफिसियंट मेज फॉर अफ्रीका) प्रोजेक्ट का है। उम्मीद की जाती है कि अफ्रीका में इसे 2017 में जारी किया जाएगा। इसके अलावा, गोल्डन राइस (चावल) को एशिया और फोर्टिफायड केला तथा कीटरोधी काऊ पी को अफ्रीका में पेश किया जाना है।
क्रिसपर (क्लसटर्ड रेगुलरली इंटरस्पर्स्ड शॉर्ट पैलिनड्रोमिक रीपीट्स) एक नई शक्तिशाली जिनोम एडिटिंग टेक्नालॉजी है। इसमें परंपरागत और जीएम फसल के मुकाबले चार क्षेत्रों में तुलनात्मक लाभ हैं : सूक्षमता, लागत और नियमन। फसल विज्ञान में अन्य प्रगति से मिलाया जाए तो क्रिसपर फसल की उत्पादकता “स्थायी सघनीकरण मोड” में बढ़ा सकता है और यह दुनिया भर में खेती योग्य 1.5 अरब हेक्येर में संभव है। इस तरह यह दुनिया भर में आहार सुरक्षा में अहम योगदान कर सकता है।
अतिरिक्त जानकारी और रिपोर्ट के एक्जीक्यूटिव सारांश के लिए www.isaaa.org पर आइए।
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